हिन्दू धर्म को विलुप्त होने से बचाने वाले | Stories Of Adi Guru Shankaracharya | Adi Guru Ki Kahani

Adi Shankaracharya introduced people to Sanatan Dharma

हिंदू धर्म को जानने वाला हर व्यक्ति यही मानता होगा कि यह धर्म सदियों से ही इस तरह चलता आ रहा है लेकिन इससे जुड़ी एक कहानी जान कर आप हैरान हो जाएंगे। एक समय था जब यही हिंदू धर्म मरणासन्न पर पहुंच गया था और धीरे-धीरे इसकी जगह अन्य धर्म लेते जा रहे थे। उस समय हिंदू धर्म को पुनः जन्म देने का बीड़ा उठाया था आदि गुरु शंकराचार्य जी ने। आपकों बता दे कि इन्हें भगवान शंकर का कलयुग अवतार भी कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म से लोगों का परिचय कराया। चारों ओर धर्म के प्रचार के लिए भारत के 4 कोनों में 4 मठों की स्थापना की। दक्षिण में रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ, उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ, द्वारका में द्वारका मठ जिसे शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ। इन मठों में आज भी उनके ज्ञान की गंगा बहती है।

Adi Shankaracharya Early life 

आदि शंकराचार्य का जन्म 508- 09 ईस्वी पूर्व में केरल के कालपी नामक ग्राम में शिवगुरु भट्ट के घर हुआ था, उनकी माता का नाम सुभद्रा था। बहुत दिनों तक शिवजी की आराधना करने पर शिवगुरु के घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी इस कारण उन्होंने अपने बेटे का नाम शंकर रखा था। जब शंकराचार्य 3 वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था, वह बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली और ज्ञानी थे। शंकराचार्य ने मात्र 8 वर्ष की आयु में ही सन्यास  ग्रहण करना चाह रहे थे। लेकिन उस समय उनकी माता से सन्यास लेने की आज्ञा लेना उनके लिए काफी कठिन था, क्योंकि वह अपनी माता की इकलौती संतान थे। 

इससे जुड़ी एक रोचक कहानी यह है कि 1 दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने उनके पैर को पकड़ लिया, तब इस वक्त का फायदा उठाते हुए शंकराचार्य ने अपनी मां से सन्यास लेने की आज्ञा लेने के लिए कहा कि, मां अगर मैंने सन्यास नहीं लिया तो यह मगरमच्छ मुझे खा जाएगा। उस समय उनकी मां ने अपने बेटे की रक्षा के लिए व्याकुल होकर उन्हें आज्ञा प्रदान कर दी, और इसके बाद शंकराचार्य ने सांसारिक जीवन त्याग दिया। उन्होंने गोविंद नाथ से सन्यास ग्रहण किया।

 Adi Guru Shankaracharya became great philosopher

आदि शंकराचार्य संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिंदू धर्म के प्रचारक थे। उन्हें भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में श्रेष्ठ दार्शनिक माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने ही दशनामी संप्रदाय की भी स्थापना की थी। शंकराचार्य ने सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य के अतिरिक्त 11 उपनिषदों और धर्म के प्रचार के लिए कई रचनाएं लिखी है। उन्होंने बोधिक धर्म को पुनःप्रतिष्ठित करने के लिए अनेक बौद्ध और हिंदू विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया। 

शंकराचार्य एक दंडी सन्यासी थे आज भी उनके द्वारा स्थापित मठों के शंकराचार्य बनने के लिए दंडी सन्यासी होना एक महत्वपूर्ण अंग है। दंडी सन्यासी भी अन्य सन्यासियों की तरह मोक्ष की प्राप्ति के लिए सांसारिक दुनिया त्याग देते हैं, परंतु दंडी सन्यासी की विशेषताएं कुछ अलग है, वे केवल ब्राह्मण ही हो सकते हैं और उनके माता-पिता और पत्नी के ना रहने पर ही उन्हें दंडी होने की अनुमति है। आदि शंकराचार्य ने सदैव समाज से अलग होकर निस्वार्थ भाव से समाज के कल्याण के लिए काम किया है। आज भी उनके मठों में मौजूद दंडी संन्यासी और स्वामी उनकी इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं। यह सन्यासी सिले हुए कपड़ों का त्याग कर देते हैं नाही भिक्षा मांग कर भोजन करते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में विश्वास रखते है, यह हाथों में दंडी धारण किए हुए होते हैं व इनके दर्शन के बिना कुंभ भी अधूरा माना जाता है।

आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन काल में कम समय में ही पूरे भारत का भ्रमण किया, जिसमें अधिकतम समय उत्तर भारत में व्यतीत किया। वे केरल से लंबी पदयात्रा करके नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारनाथ पहुंचे, जहाँ पहुंच कर उन्होंने गुरु गोविंदपाद से योग शिक्षा और अद्वैत ज्ञान प्राप्त किया व 3 वर्षों तक साधना करते रहे। इसके पश्चात वे गुरु से आज्ञा लेकर काशी विश्वनाथ की और बढ़ गए, जहां उन्हें साक्षात भगवान शिव के दर्शन हुए। यह कहानी शंकराचार्य के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जब वह काशी विश्वनाथ की ओर बढ़ रहे थे, तब उनके रास्ते में एक चांडाल प्रकट हो गया, गुस्से में उन्होंने उस चांडाल को वहां से हट जाने के लिए कहा, तभी चांडाल बोला- हे मुनि, आप शरीर में रहने वाले परमात्मा की उपेक्षा कर रहे हैं। इसलिए आप हमारे मार्ग से हट जाएं। चांडाल के इस ज्ञान को सुन आचार्य शंकर ने प्रभावित होकर चांडाल के सामने हाथ जोड़ लिए और कहा कि आपने मुझे ज्ञान दिया है इसलिए आप मेरे गुरु हुए, तभी उस चांडाल के स्थान पर भगवान शिव के साथ 4 देवो ने उन्हें दर्शन दिए। 


Adi Guru Shankaracharya and Mandan Mishra Story 

इसके बाद की कहानी और भी रोचक है...इस दौरान शंकराचार्य की मुलाकात आचार्य मंडन मिश्र से हुई। उनके और मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ का बड़ा ही रोचक किस्सा है। एक बार आचार्य ने मिश्र को उनके घर जाकर शास्त्रार्थ में हरा दिया, लेकिन यह सब देखना मिश्र की पत्नी को बिल्कुल भी नहीं भाया और उन्होंने आचार्य शंकर को चुनौती देते हुए कहा, आपने तो आधा ही अंग जीता है अगर पूरा जीतना चाहते हैं तो मुझे पराजित कर के दिखाएं। ऐसा कहते ही उनकी पत्नी भारती ने आचार्य के सामने कामशास्त्र पर प्रश्न करना प्रारंभ कर दिया परंतु आचार्य शंकर बाल ब्रह्मचारी थे और इस विषय को लेकर अज्ञानी थे, लेकिन उन्होंने कुछ समय लेकर इस विषय में भी भारती को पराजित कर दिया। ऐसे ही उन्होंने कई बड़े-बड़े ज्ञानी पंडितों को परास्त कर गुरू पद प्राप्त किया। 

धर्म प्रचार में संलग्न रहकर उन्होंने कई रचनाएं की। इनसे जुड़ी एक और कहानी है | एक बार ब्रह्म मुहूर्त के दौरान आचार्य शंकर अपने शिष्यों के साथ एक सकरी गली से स्नान करने के लिए मणिकर्णिका घाट जा रहे थे,  उस समय एक स्त्री अपने मरे हुए पति का सर गोद में लेकर विलाप कर रही थी तब आचार्य के शिष्यों ने उस महिला को हटाने के लिए कहा पर महिला ने अनदेखा कर दिया। यह सब देखने के बाद आचार्य ने स्वयं उस महिला से आग्रह किया, जिसके बाद महिला ने आचार्य को उत्तर देते हुए कहा कि आप शव को खुद क्यों नहीं हटा देते हो, इस पर आचार्य ने कहा-हे देवी, आप शोक में व्याकुल होकर यह भी भूल गई हो कि शव स्वयं हटने की शक्ति नहीं रखता। स्त्री ने तुरंत उत्तर दिया- , आपकी दृष्टि में तो शक्ति निरपेक्ष है और ब्रह्मा ही जगत का कर्ता  है, फिर शक्ति के बिना यह शव क्यों नहीं हट सकता। उस स्त्री के ज्ञान को देख आचार्य प्रभावित और भावुक हो गए। इस तरह उन्हें जहां से भी ज्ञान मिलता वह उसे समेटते चलते थे।

आदि शंकराचार्य ने बहुत ही प्रतिष्ठा से हिंदू धर्म को एक अलग अंदाज में निखारा और अपने लिखे शास्त्र उपनिषद से ज्ञान का प्रकाश फैलाया। शंकराचार्य द्वारा कथित तथ्य सांसारिक और दिव्य अनुभवों का मिलन है। आदि शंकराचार्य के अनुसार तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो। 

आदि गुरु शंकराचार्य बहुत ही अल्प आयु में स्वर्ग सिधार गए। लेकिन कम समय में ही सनातन धर्म की अखंड जोत को प्रज्ज्वलित कर गए।




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